अमृतसर के जलियांवाला बाग हत्याकांड को 101 साल हो चुके हैं। 13 अप्रैल 1919 को हुई इस घटना पर 1977 में गुलजार की लिखी कहानी पर फिल्म बनी थी, लेकिन यह फिल्म अगले 10 साल तक रिलीज नहीं हो पाई थी। पहले फिल्म का ज्यादा बजट रिलीज के आड़े आया और फिर इसके हीरो विनोद खन्ना ने ओशो का शिष्य बनने के लिए इंडस्ट्री ही छोड़ दी थी।
बनने से रिलीज हाेने तक का सफर : 70 के दशक की शुरुआत में फिल्म बनना शुरू हुई।पहले इसे ऋषिकेश मुखर्जी डायरेक्ट कर रहे थे और परीक्षित साहनी के साथ उनके पिता भी फिल्म में मुख्य किरदार में थे। बलराज साहनी के निधन और ओवर बजटिंग के कारण फिल्म बंद कर दी गई। लेकिन बाद में प्रोड्यूसर्स ने दशक के आखिर में इसे फिर से बनाना शुरू किया।
विनोद नहीं, परीक्षित थे फिल्म के हीरो : जब फिल्म की शूटिंग दोबारा शुरू हुई तो इसके कलाकार बदल गए। जो रोल बलराज साहनी को निभाना था, उसे ओम पुरी ने निभाया। विनोद खन्ना का कद उस वक्त इंडस्ट्री में सुपर स्टार का था। परीक्षित साहनी को पहले मेन लीड निभानी थी, पर उनकी जगह विनोद खन्ना को लिया गया। फिल्म वेबसाइट आईएमडीबी की रिपोर्ट्स के मुताबिक, जब यह फिल्म शुरू हुई थी, तब विनोद खन्ना को सपोर्टिंग रोल में रखा गया था, पर बाद में उनके स्टारडम को देखते हुए लीड उन्हें बनाया गया। इतना ही नहीं उनके लिए अलग से किरदार की कहानी लिखी गई। इस फिल्म में विनोद खन्ना के किरदार को आवाज एक डबिंग आर्टिस्ट ने दी थी।
5 साल ओशो आश्रम में रहे विनोद, लौटने पर शूटिंग पूरी की: 70 के दशक के आखिर में विनोद खन्ना फिल्म इंडस्ट्री छोड़कर आचार्य रजनीश यानी ओशो का शिष्य बनने के लिए अमेरिका चले गए। यह वो दौर था, जब विनोद खन्ना का करियर शबाब पर था। उनके जाने के बाद फिल्म जलियांवाला बाग में उनके हिस्से की शूटिंग अधूरी रह गई। अगले 5 साल तक के लिए इसकी रिलीज और डिले हो गई। विनोद जब वापस लौटे तो उन्होंने बाकी का हिस्सा शूट किया और इस तरह यह फिल्म 1987 में रिलीज हो सकी।